भोर हुई तो देखा तुम्हे एक गुलाब की पंखुड़ी की तरह
जब सूरज उगा , रौशनी चितकी,तो लगी तुम सूरजमुखी की तरह
जब शाम ढली तो देखापुर्निमा की चाँद की तरह
तब मैंने सोचा की मैं क्या हूँ?
मैं हूँ जल की तरह
बदन को दूं ठंडक और आत्मा को निर्मल
समां जाऊं सब मैं
नाम भी न रह जाएगा
बहूँ तुम्हारे साथ या तुम्हे ले कर
समां जाओ मुझे मैन्चंद की तरह
दूर आकाश पर रह कर भी
देखोगे तो मिलगा वोह तुम्हे जल मैं
Tuesday, March 9, 2010
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this is really good and shows the hidden talent of yours
ReplyDeletehats off